वैलेंटाइन स्पेशल
कहानी #मेरे_वैलेंटाइन की - रागिनी
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उस रात तेज़ बारिश हो रही थी । आसमान में चमकते बिजली ऐसे लग रहे थे जैसे अभी शरीर के आर पार हो जायेंगे । ऊपर से तेज हवाएं रूह तक को कंपा दे रही थी । बादलो की वो गड़गड़ाहट ऐसा लग रहा था कोई चीख चीख के मुझे बुला रहा हो ।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ था । ऐसी तेज हवाएं , बिजली का चमकना , तेज बारिश अक्सर होती रहती है । पर उस दिन जाने क्या अलग था उस तेज़ हवाओ से खिड़कियों को खुलते बंद होते देखने में । मन सहमा हुआ था । क्यों ?नही पता था । कुछ अनिष्ट होने वाला था । पर फिर भी मन को यह कह के फुसला ले रहा था कि ये तो अक्सर का काम है । कुछ नया नही हो रहा । वही बिजली का चमकना , हवा... तभी जोड़ से बिजली चमकी और एक तेज गड़गड़ाहट हुई । मै डर गया । सहम गया ।
खिड़की के पास बैठ गया और बाहर दिख रहे प्रकोप के डर को महसूस करने लगा । तेज़ बिजली चमकती बाहर पूरा उजाला हो जाता । सब कुछ स्पष्ट देख सकता था । फिर से वही गुप् अँधेरा । और इस अँधेरे में मै अकेला खुद भी ग़ुम हो जाता था । बिजली के चमक से बाहर पानी की बूंदों की उछल कूद की अफरा तफरी देख रहा था । ऐसा लग रहा था वो कुछ कह रही हो । पर मैं नासमझों की तरह उन्हें देख रहा था । बिजली के गड़गड़ाहट को बड़े ध्यान से सुन रहा था । डर तो बहुत लग रहा था उस गड़गड़ाहट के आवाज से । पर शायद उसमे कोई राज़ छिपी थी आज बस उसे ही सुनना चाहता था । वही खिड़की के पास बैठ के उस राज़ को समझते समझते आँख लगी पता नही चला ।
सुबह सूरज की किरणे आँखों पे पड़ी तो नींद खुली । वही खिड़की पे ही सर रख के सो गया था रात को । अभी बाहर सब सामान्य था । कुछ डरावना नही था । कोई बिजली की गड़गड़ाहट नही थी कोई बारिश नही। पर कुछ रहस्यमय अब भी था , जाने क्या !
तभी दिमाग में घंटी बजी और याद आया अरे आज दोस्तों के साथ घूमने जाना है । चल जल्दी तैयार हो जाता हु । मै रेडी हुआ और तय स्थान पे पंहुचा । वहा सब मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे । और इन सब के बीच सबसे ज्यादा बेसब्र थी वो दो आँखें जिन्हें ना देखु तो मेरा दिन ना ढले । जो मुझे ना देखे तो मेरा नजर आया व्यर्थ लगे । उन आँखों में एक दुनिया थी जिसमे बसने का स्वप्न देखा करता था । वो आँखे दिखने में हिरनी जैसी थी या नही , मुझे नही पता । मै बस उन आँखों में अपना पूरा प्रतिविम्ब देख सकता था ।
एक मधुर सी आवाज सुनाई दिया 'बहुत देर कर दिया , लगता है हमारे शायर जी आज कल अपनी ग़ज़लों में ही अपनी दुनिया बसा लिए है' । यह व्यग्य ! आह ! कितना सुकून मिलता है इस खूबसूरत आवाज़ को सुनकर , जैसे कोई धीरे से रागिनी बजी हो । हा रागिनी । इस रागिनी को सुनकर मै सुधबुध खो देता । मेरी आवाज ,मेरी दुनिया , मेरी निगाहें , मेरा अनुभव बस उसी रागिनी में खो जाता । मै उस आवाज को सुनकर, उन आँखों में अपना प्रतिविम्ब देखकर पूरी जिंदगी बिता दू ।
अब सब निकले वहा से आगे की ट्रिप के लिए बाइक से । मैंने अपनी बाइक रितेश को दे दी और मै रागिनी की बाइक लिया, रागिनी पीछे बैठी । धीरे धीरे सफर आगे बढ़ रहा था । शुष्क ठंडी में बाइक पर बैठ के घूमने आ अनुभव की बहुत सुंदर होता है । और यह सुन्दर सफर और भी ज्यादा खूबसूरत हो गया था क्योकि साथ मेरे रागिनी थी । कितना खूबसूरत एहसास था , मै बाइक चला रहा था, रागिनी बैठी थी । दिल कर रहा था कि ये सफर ख़त्म ही ना हो । मेरी दुनिया, मेरी जिंदगी, मेरा प्यार मेरे हर कदम साथ हो और क्या चाहिए । सुख हो दुःख हो , गर कुछ हो संग तो बस तुम हो ।
मै इन्ही ख्यालों में खोया था । तभी मयंक ने मुह चिढ़ाते मेरे आगे निकला । मैने भी जोश में अपनी स्पीड बढ़ा दी । तभी रितेश की बाइक ,फिर दिनेश की बाइक आगे निकली । मैंने भी ये भूल कर की स्कूटी पे बैठा हू , स्पीड और तेज़ कर दी । रागिनी मुझे मना करने लगी । शायद वो डरने लगी थी । मैंने उसे चिढ़ाता हुआ बोला ,' आज तुम्हे स्पीड दिखाता हु क्या चीज होती है ।' रागिनी मना करती रही , मै स्पीड बढ़ाता गया । थोड़ी और जोश में आया और अब बाइक दाये बाए काट काट कर चलाने लगा । मै जोश में ये भूल गया था कि अब बाइक मेरे कण्ट्रोल से बाहर हो चुकी है । और फिर वो घडी आयी जो मेरे जीवन में अंधकार कर गयी । अचानक से एक मोड़ आया । और सामने से आ रही ट्रक को समझ नही पाया। बाइक मेरे कण्ट्रोल से बाहर हो चुकी थी । वो सीधा ट्रक के पहिए की और बढे जा रही थी । पूरी स्पीड में । मै मौत को डबल स्पीड में अपने पास आते हुए महसूस कर सकता था । मै हक्का बक्का रह गया । वो छण मैंने ट्रक के पहिए को ठीक आँखों के सामने देखा था । फिर अचानक मुझे एक जोर का धक्का लगा और मै सड़क के किनारे लुढ़क गया । वो रागिनी के हाथों का आखिरी स्पर्श था । मैंने अपनी बंद हो रही आँखों से रागिनी को आखिरी बार देखा । ट्रॅक बाइक समेत रागिनी को रौंदते आगे बढे जा रहा था । उसके अंगों को चींटी की तरह सड़क पे मसले जा रहा था । उसके एक एक अंग चटक कर अलग हो रहे थे । मेरे आँखों के आगे अँधेरा हुए जा रहा था । जब कुछ दिखना बंद हो रहा था । मैंने अपनी बंद हो चुकी आँखों के किनारे से धुंधला सा देखा था , ट्रॅक का पहिया रागिनी के सिर पर होते हुए उसकी उन आँखों को मसलता हुआ निकला निकला जिनमे मै अपना प्रतिविम्ब देखता था । जब हर तरह अँधेरा हो गया तो आखिरी बार मैंने रागिनी की आवाज सुनी । उस आवाज़ में वो रागिनी की धुन नही थी । एक करुण पुकार थी, एक दर्द थी जो कुछ कह रही थी... हा मै जानता हूं वो क्या कह रही थी । वो उस रहस्य को बता रही थी जो कल रात मैंने महसूस किया था । उसके वो आखिरी लब्ज़... उसमे छिपा रहस्य... जो सिर्फ मै समझ सका था ।
जब मुझे होश आया मै हॉस्पिटल के बेड पे लेटा हुआ था और मेरे सभी अपने मुझे घेरे हुए थे , सिवाय एक के... मेरे मुंह से पहला लब्ज़ निकला 'रागिनी' । हर तरफ सन्नाटा पसरा था । ऐसा लगा जैसे कोई बड़ा ग्रह मेरी छोटी सी दुनिया से आकर टकरा गया , और मेरी दुनिया के दो टुकड़े करके अलग अलग दिशाओं में उछाल दिया । एक टुकड़े पे मै रह गया, एक टुकड़े पे रागिनी...