Book review 'Zindagi 50-50'
जिंदगी 50-50 जैसा नाम है पूरा उपन्यास उसी के इर्द- गिर्द घूमता है। मिस्टर तालिब तूफानी जी के सजेशन पर मैंने यह किताब पढ़नी शुरू की।
एक जिंदगी के अंदर कई जिंदगियां जीनी होती है, कई टुकड़ो में बंटकर। वास्तविक जिंदगी कौन सा है हम कभी जान ही नही पातें, और जब तक समझ पाते हैं, शायद देर कर चुके होतें हैं। इस देर हो चुके भूल को सुधारने के लिए दूसरा जन्म मिलता हो या न मिलता हो, पर अगर इसी जन्म के अंदर यदि दूसरा मौका मिलता है तो हमें इसका लाभ अवश्य लेना चाहिए।
Book review 'Zindagi 50-50' by Suraj jaiswal Kabira (Hindi) |
हमारी आंखों पर एक चश्मा चढ़ा होता है, जिसमे हम सिर्फ एक अपनी बनाई नजरिये से ही देख पातें हैं। हम अपनी जिंदगी के अलग अलग हिस्से को तो उस चश्में से देख सकतें है पर वह चश्मा हमें दूसरें की जिंदगी के पहलुओं को दिखाने में असमर्थ होती है। हम भूल जातें हैं कि दूसरे की जिंदगी भी कई पहलुओं। के बटी होगी, उसकी जिंदगी भी हो सकती है 50-50.
उपन्यास की कहानी आपकी जिंदगी में आयी कहानियों में सबसे अच्छी कहानियों की सूची में जगह बनाने में अवश्य सफल हो सकती है, यदि आप अनमोल भागवत जी के नजरिये से देख सके, ऐसा मेरा मानना है। इसको आप ना सिर्फ अपनी जिंदगी से बल्कि अपने आस पास दिख रहे लोगो के जिंदगी से भी जुड़ा हुआ महसूस कर सकेंगें।
यह उपन्यास आपको एक अवश्य पढ़नी चाहिए, पर धैर्य के साथ। धैर्य इसलिए क्योकि उपन्यास के शुरुआती 80 पेजेज आपके लिए उबाऊ हो सकतें हैं क्योंकि इसमें संवाद से ज्यादा किरदारों के मन में उठने वाले विचारो को महत्व दिया गया है। हो सकता है यह जरूरी भी हो पर मेरा मानना है कि जरूरत से ज्यादा किरदारो के मन के विचार डालना किसी संस्कारी फेसबुकिये के वाल पर सुविचार पढ़ने जैसा है। अंततः यही कहना चाहूंगा कि यह किताब आपको अवश्य पढ़नी चाहिए, चाहे आप किसी मिडल क्लास फैमिली से सम्बन्ध रखतें हो या किसी राजवाड़े के महलों में निवास करतें हो।
-सूरज जायसवाल 'कबीरा'
No comments:
Post a Comment
How was this post friends? We hope it was helpful for you. So please give your response and share this post to your friends and relatives. Thanks for reading.