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Saturday 21 April 2018

Internet In Mahabharata

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internet in Mahabharata
●महाभारत काल मे इंटरनेट●
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महाभारत का युद्ध अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। समस्त मैदान युद्ध मे घायल अथवा वीरगति को प्राप्त यौद्धाओं के शारीरिक अवशेषों से पटा हुआ है। दुर्योधन की 11 अक्षोहिणी सेना का समूल नाश हो चुका है और बलवान दुर्योधन अकेला ही गदा को लेकर रक्तरंजित शरीर को लिए सरोवर की ओर भागता चला जा रहा है। पांडवों के पक्ष में 2000 रथ, 700 हाथी, पांच हजार घुड़सवार तथा 10 हजार पैदल सैनिक मात्र बचे हैं। 
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सहसा पांडवों के सेनापति धृष्टधुम्न मैदान में विजयी भाव से खड़े कृष्ण के सेनापति (और महाभारत के एकलौते Undefeated यौद्धा) "सात्यकि" के नजदीक आकर मैदान में बंधनो में जकड़े पड़े "संजय" को देख बोले-"इसका क्या करना है?"
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संजय? होल्ड ऑन... संजय महाभारत के युद्ध मे क्या कर रहा था? संजय का काम तो सॅटॅलाइट टीवी पर देखकर महाभारत का हाल धृतराष्ट्र को सुनाना होता था? 
Right? No... Absolutely Wrong.... 
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वास्तव में... संजय महाभारत का हाल देखकर हर दो-चार दिनों में जाकर धृतराष्ट्र को मुंह से "Past Tense" में सुनाकर आता था। संजय को युद्धक्षेत्र में मुक्त विचरण करने की अनुमति वेदव्यास जी के द्वारा मिली थी। चूंकि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास दोनों पक्षों के लिए पूज्य थे इसलिए उनकी आज्ञा के उल्लंघन का साहस किसी मे नही था। 

परंतु...
युद्ध के अंतिम दिनों में कौरव पक्ष का विध्वंस होते देख संजय की स्वाभाविक स्वामिभक्ति जोर मार गई और उसने दुर्योधन के पक्ष में तलवार उठा ली और इस कारण पांडवों ने उसे बंदी बना लिया। 
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शल्य पर्व के अंतर्गत हृदप्रवेश पर्व में यह वर्णन आता है कि सात्यकि अंततः संजय के वध का निर्णय ले लेते हैं लेकिन ऐन मौके पर एक बार फिर वेदव्यास आ कर संजय को अभयदान देते हैं। 
इस प्रकार संजय बच निकलता है और सरोवर के नजदीक लहुलुहान हालत में मौजूद दुर्योधन से संवाद करते हुए अंततः हस्तिनापुर पहुंचता है। संजय को कोई दिव्यदृष्टि भी प्राप्त हुई थी, ऐसा कोई वर्णन महाभारत में है ही नही।
भारतीय इतिहास का सम्यक और मानवीय अध्ययन करना है तो मूल ग्रंथों को पढिये। 
जिनके ज्ञान का स्त्रोत "बीआर चोपड़ा की महाभारत" हो उन्हें महाभारत काल मे इंटरनेट के मुगालते हो आना सामान्य बात है।
मूल ग्रंथों को पढिये। अपनी संस्कृति और प्रतीकों के सम्मान के लिए अनगिनत वाजिब वजहें जरूर मिल जाएंगी। 
-विजय सिंह ठाकुराय जी के वाल से

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