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Wednesday 28 March 2018

भोजन समय से नहीं कर सकते तो

भोजन समय से नहीं कर सकते तो
लोगो की दिनचर्या बहुत व्यस्तता भरी होती जारही ही | रोज की वही भागा दौड़ी में हम कही भूल जाते है कि इन सबके बीच हमारे सेहत की वाट लगी पड़ी है | खासतौर पर उन लोगो की सेहत में ज्यदा असर हो रहा है जो घर से दूर रहते है , कोई पढाई के लिए कोई नौकरी के लिए | ऐसे में होता ये है की हम खाने पर कम ध्यान दे पाते है, खासतौर पर जब खाना खुद बनाना होता है | पर यहा कुछ टिप्स है जिन्हें आप फॉलो करके कई तरह की बीमारियों से बच सकते है |

भोजन समय से नहीं कर सकते तो एक बात मान लो दिन भर में 10 - 12 ग्लॉस पानी ही लगभग हर घण्टे में 1 ग्लॉस पीते रहा करो ।

ऐसा करने से कम से कम ...

डिहाइड्रेशन तो नहीं होगा ।

चक्कर तो नहीं आयेंगे ।

उल्टी , दस्त से तो बचोगे ।
बार - बार ज़ुकाम और बुखार तो नहीं होगा ।
चेहरे पर झाइयां और फुंसियां तो नहीं होंगी ।
यूरिन और किडनी सम्बंधी बीमारियों से तो बचना होगा ।
...
थोड़ा और कुछ कर सको तो...
सुबह बस 30 मिनट का योगाभ्यास कर लो ,
15 मिनट प्राण साधना कर लो और 15 मिनट ध्यान कर लो ।
देख लेना कार्य करने की क्षमता और गुणवत्ता में वृद्धि हो जायेगी ।
भले ही फ़ील्ड वर्क है पर जितने परिश्रम से अभी जितना आउटपुट मिलता है ..
अपने दैनिक जीवन में इतना जोड़ लेने भर से ..इतने परिश्रम में ही परिणाम और बेहतर हो जायेंगे ।
..
जानता हूँ धन बहुत आवश्यक है , कैरियर बनाना है , भविष्य उज्जवल करना है ..लेकिन क्या स्वास्थ्य की कीमत पर ऐसा करना उचित होगा ?
  1. छोटी सी बात है ...एकबार करके देख लो ..शायद बार - बार बीमार पड़ना बन्द हो जाये ।

Saturday 24 March 2018

voyager वायेजर - मानव की लम्बी छलांग

voyager वायेजर - मानव की लम्बी छलांग

voyager वायेजर - मानव की लम्बी छलांग
खोज करना मानव की फ़ितरत है। इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार होता है। तभी तो, मानव उस चीज़ को खोजने में जुटा हुआ है, जिसकी कोई हद नहीं। जिसका कोई ओर-छोर नहीं।

पर, वो आख़िर क्या है जिसका कोई ओर-छोर नहीं और हम जिसकी खोज में जुटे हुए हैं। वो है हमारा ब्रह्मांड।

इस में कितनी आकाशगंगाएं हैं?

कितने सितारे हैं?
कितने ग्रह और उपग्रह हैं?
इसमें से किसी भी सवाल का जवाब हमें नहीं मालूम। मगर हम ब्रह्मांड का ओर-छोर, इसके राज़ तलाशने में जुटे हैं।
मानव की खोजी फ़ितरत ने ही जन्म दिया है दुनिया के सबसे महान अंतरिक्ष अभियान को। इस महानअंतरिक्ष अभियान का नाम है-वायेजर

बात आज से 40 साल पहले की है। 1977 में अगस्त और सितंबर महीने में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दो अंतरिक्ष यान धरती से रवाना किए थे। इन्हीं का नाम था वायेजर एक और दो। वायेजर 2 को 20 अगस्त को अमरीकी अंतरिक्ष सेंटर केप कनावरल से छोड़ा गया था। वहीं वायेजर एक को पांच सितंबर को रवाना किया गया। आज से 40 बरस बाद ये दोनों अंतरिक्ष यान धरती से अरबों किलोमीटर की दूरी पर हैं। वायेजर एक तो अब हमारे सौर मंडल से भी दूर यानी क़रीब 20 अरब किलोमीटर दूर जा चुका है। वही वायेजर दो ने दूसरा रास्ता लेते करते हुए क़रीब 17 अरब किलोमीटर का सफ़र तय कर लिया है।

ये दूरी इतनी है कि वायेजर एक से धरती पर संदेश आने जाने में क़रीब 38 घंटे लगते हैं। वो भी तब जब ये रेडियो संकेत, 1 सेकेंड में तीन लाख किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, यानी प्रकाश की गति से चलते हैं। वहीं वायेजर 2 से धरती तक संदेश आने में 30 घंटे लगते हैं। सबसे दिलचस्प बात ये है कि आज 40 साल बाद भी दोनों यान काम कर रहे हैं और मानवियत तक ब्रह्मांड के तमाम राज़ पहुंचा रहे हैं। हां, अब ये बूढ़े हो चले हैं। इनकी काम करने की ताक़त कमज़ोर हो गई है। इनकी तकनीक भी पुरानी पड़ चुकी है। आज, वायेजर यानों से आने वाले संदेश पकड़ने के लिए नासा ने पूरी दुनिया में रेडियो संकेत सेंटर बनाए हैं।

ये बात कुछ वैसी ही है जैसे आप शहर से बाहर जाएं तो आपको मोबाइल का संकेत पाने में मशक़्क़त करनी पड़े। ठीक इसी तरह आज नासा, दुनिया भर में बड़ी-बड़ी सैटेलाइट डिश लगाकर वायेजर से आने वाले संकेत पकड़ता है।

इस अभियान से शुरुआत से जुड़े हुए वैज्ञानिक एड स्टोन कहते हैं कि आज वायेजर एक ब्रह्मांड में इतनी दूर है, जहां शून्य, अंधेरे और सर्द माहौल के सिवा कुछ भी नहीं। वो बताते हैं कि वायेजर अभियान के डिज़ाइन पर 1972 में काम शुरू हुआ था।

आज 40 साल बाद वायेजर अभियान से हमें ब्रह्मांड के बहुत से राज़ पता चले हैं। बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेपच्युन ग्रहों के बारे में तमाम दिलचस्प जानकारियां मिली हैं। इन विशाल ग्रहों के चंद्रमा के बारे में तमाम जानकारियां वायेजर अभियान के ज़रिए मिली हैं।
Carl Sagan
वायेजर अभियान से जुड़े एक और व्यक्ति थे वैज्ञानिक कार्ल सगन। सगन ने वायेजर यानों से ग्रामोफ़ोन जोड़ने के प्रोजेक्ट पर काम किया था। वो पहले अमरीका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोफिजिक्स पढ़ाया करते थे। बाद में सगन नासा के लिए काम करने लगे। वो मंगल ग्रह पर जाने वाले पहले अभियान वाइकिंग का भी हिस्सा थे। उन्होंने बच्चों के लिए विज्ञान की कई दिलचस्प क़िताबें लिखीं। कई रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में भी भागीदारी की।

वायेजर यानों में ग्रामोफ़ोन लगाने का उद्देश्य एक आशा थी। आशा ये कि धरती के अलावा भी ब्रह्मांड में कहीं जीवन अवश्य है। यात्रा करते-करते जब किसी और सभ्यता को हमारा वायेजर मिले, तो उसे मानवी सभ्यता की एक झलक इन ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए मिले। यानी वायेजर सिर्फ़ एक अंतरिक्ष अभियान नहीं, बल्कि सुदूर ब्रह्मांड को भेजा गया मानवता का संदेश भी हैं। ये ग्रामोफ़ोन तांबे के डिस्क से बने हैं, जो क़रीब एक अरब साल तक सही सलामत रहेंगे। इस दौरान जो अगर वायेजर किसी ऐसी सभ्यता के हाथ लग गया जो ब्रह्मांड में कहीं बसती है, तो, इन ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए उन्हें मानवता के होने का, उसकी प्रगति का संदेश मिलेगा।

नासा के सीनियर वैज्ञानिक एड स्टोन बताते हैं कि वायेजर यानों को साल 1977 में रवाना करने की भी एक वजह थी। उस साल सौर मंडल के ग्रहों की कुछ ऐसी स्थिति थी, कि ये यान सभी बड़े ग्रहों यानी बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून से होकर गुज़रते। इस अभियान पर काम करने वाली लिंडा स्पिलकर बताती हैं कि ग्रहों की स्थिति की वजह से उस दौरान नासा में काम कर रहे कई लोगों के बच्चे हुए थे। आज इन्हें वायेजर पीढ़ी के बच्चे कहा जाता है।

लॉन्च के 18 महीने बाद यानी 1979 में वायेजर 1 और 2 ने बृहस्पति यानी जुपिटर ग्रह की खोज शुरू की। दोनों अंतरिक्ष यान ने सौर मंडल के इस सबसे बड़े ग्रह की बेहद साफ़ और दिलचस्प तस्वीरें भेजीं।

वायेजर अभियान से जुड़े इकलौते ब्रिटिश वैज्ञानिक गैरी हंट बताते हैं कि वायेजर यानों से आने वाली हर तस्वीर जानकारी की नई परत खोलती थी।

वायेजर अभियान से पहले हमें यही पता था कि सौर मंडल में सिर्फ़ धरती पर ही ज्वालामुखी पाए जाते हैं। लेकिन वायेजर से पता चला कि बृहस्पति के एक चंद्रमा पर भी ज्वालामुखी हैं। एड स्टोन कहते हैं कि वायेजर अभियान ने सौर मंडल को लेकर हमारे तमाम ख़याल ग़लत साबित कर दिए। जैसे हमें पहले ये लगता था कि सागर सिर्फ़ धरती पर हैं। मगर, वायेजर से आई तस्वीरों से पता चला कि बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर भी सागर हैं।

आज की दिनांक में वायेजर अभियान की वास्तविक तस्वीरों को लंदन के क्वीन मैरी कॉलेज की लाइब्रेरी में रखा गया है। क्योंकि नासा ने इन तस्वीरों की डिजिटल कॉपी बना ली हैं।

गैरी हंट बताते हैं कि जब वायेजर 1 ने शनि के चंद्रमा मिमास की तस्वीरें भेजी थीं, तो उन्हें देखकर सभी लोग हैरान रह गए थे। वो दौर स्टार वार्स फ़िल्मों का था। इसलिए वैज्ञानिकों ने मिमास को ‘डेथ स्टार’ का फ़िल्मी नाम दिया था। वायेजर ने तस्वीरों के ज़रिए हमें शनि के वलयों के नए रहस्य बताए थे। इस अभियान से पता चला था कि शनि के उपग्रह टाइटन पर बड़ी तादाद में पेट्रोकेमिकल हैं। और यहां मीथेन गैस की बारिश होती है।

वायेजर अभियान के ज़रिए हमें शनि के छोटे से चंद्रमा एनसेलाडस का पता चला था। बात में कैसिनी-ह्यूजेंस अभियान के ज़रिए भी इसके बारे में कई जानकारियां मिली थीं। आज सौर मंडल में जीवन की के सबसे अधिक संभावना, शनि के चंद्रमा एनसेलाडस पर ही दिखती हैं।
वैज्ञानी एमिली लकड़ावाला कहती हैं कि शनि का हर चंद्रमा अपने आप में अलग है। एमिली के मुताबिक़ वायेजर के ज़रिए हमें ये एहसास हुआ कि शनि के तमाम चंद्रमाओं की पड़ताल के लिए हमें नए अभियान भेजने की ज़रूरत है। नवंबर 1980 में वायेजर 1 ने शनि से आगे का सफ़र शुरू किया। नौ महीने बाद वायेजर 2 ने सौर मंडल के दूर के ग्रहों का मार्ग लिया। वो 1986 में यूरेनस ग्रह के क़रीब पहुंचा। वायेजर 2 ने हमें बताया कि ये ग्रह गैस से बना हुआ है और इसके 10 उपग्रह हैं।

1989 में वायेजर 2 नेपच्यून ग्रह के क़रीब पहुंचा, तो हमें पता चला कि इस के चंद्रमा तो बेहद दिलचस्प हैं। ट्राइटन नाम के चंद्रमा पर नाइट्रोजन के गीज़र देखने को मिले। सौर मंडल के लंबी यात्रा में वायेजर 1 और 2 ने मानव को तमाम जानकारियों से सराबोर किया है। हमें पता चला है कि धरती पर होने वाली कई गतिविधियां सौर मंडल के दूसरे ग्रहों पर भी होती हैं।

वायेजर की खोज की बुनियाद पर ही बाद में कई और अंतरिक्ष अभियान शुरू किए गए। जैसे शनि के लिए कैसिनी-ह्यूजेंस अभियान अंतरिक्ष यान भेजा गया। बृहस्पति ग्रह के लिए गैलीलियो और जूनो यान भेजे गए। अब कई और अभियान सुदूर अंतरिक्ष भेजे जाने की योजना है। हालांकि फिलहाल यूरेनस और नेपच्यून ग्रहों के लिए किसी नए अभियान की योजना नहीं है। तब तक हमें वायेजर से मिली जानकारी से ही काम चलाना होगा।

मानव के इतिहास में ऐसे गिने-चुने अभियान ही हुए होंगे, जिनसे इतनी जानकारियां हासिल हुईं। आज चालीस साल बाद तकनीक ने काफ़ी तरक़्क़ी कर ली है। ऐसे में वायेजर यान पुराने पड़ चुके हैं।

वायेजर विश्व के पहले ऐसे अंतरिक्ष अभियान थे जिनका नियंत्रण कंप्यूटर के हाथ में था। आज चालीस वर्ष बाद भी ये दोनों ही यान ख़ुद से अपना सफर तय करते हैं। अपनी पड़ताल करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपना बैकअप सिस्टम चालू करते हैं।वायेजर को बनाने में इस्तेमाल हुई कई तकनीक हम आज भी इस्तेमाल करते हैं। आज के मोबाइल फ़ोन और सीडी प्लेयर वायेजर में इस्तेमाल हुई कोडिंग सिस्टम तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। आज के स्मार्टफ़ोन में तस्वीरें प्रोसेस करने की जो तकनीक है, वो वायेजर के विकास के दौरान ही खोजी गई थी।

voyger
वायेजर अभियान का सबसे महान क्षण उस वक़्त आया था, जब 14 फरवरी 1990 को इसने अपने कैमरे धरती की तरफ़ घुमाए थे। उस दौरान पूरे सौर मंडल और ब्रह्मांड में धरती सिर्फ़ एक छोटी सी नीली प्रकाश जैसी दिखी थी। एमिली लकड़ावाला कहती हैं कि पूरे ब्रह्मांड में ये एक छोटी सी नीले रंग की टिमटिमाहट ही वो जगह है, जहां हम जानते हैं कि जीवन मौजूद है। वो कहती हैं कि किसी भी खगोलीय घटना से धरती पर से जीवन समाप्त हो सकता है। ऐसे में वायेजर के ज़रिए ही हमारी सभ्यता की निशानियां सुदूर ब्रह्मांड में बची रहेंगी।

2013 में वायेजर 1 अंतरिक्ष यान सौरमंडल से दूर निकल गया। आज वो अंतरिक्ष में घूम रहा है। अभी भी जानकारियां भेज रहा है। जल्द ही वायेजर 2 भी सौरमंडल से बाहर चला जाएगा।

दोनों ही अंतरिक्ष यान में आण्विक बैटरियां लगी हैं। जल्द ही इनसे विद्युत बनना बंद हो जाएगी। हर साल इनसे चार वाट कम बिजली बनती है। वायेजर के प्रोग्राम मैनेजर सूज़ी डॉड कहते हैं कि हमें बहुत सावधानी से वायेजर अभियान को जारी रखना है। इसके पुराने पड़ चुके यंत्र बंद किए जा रहे हैं। दोनों के कैमरे बंद किए जा चुके हैं। क्योंकि अंतरिक्ष में घुप्प अंधेरा है। देखने के लिए कुछ भी नहीं है। विद्युत बचाकर वायेजर को सर्द अंतरिक्ष मे गर्म बनाए रखा जा रहा है। सूज़ी डॉड कहते हैं कि अगले दस वर्षो में दोनों को पूरी तरह से बंद करना होगा। ये पूरी मानवता के लिए बहुत दुखद दिन होगा। हालांकि तब तक दोनों ने अपनी बेहद दिलचस्प ज़िंदगी का सफ़र पूरा कर लिया होगा।

लेकिन दोनों ही अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में हमेशा ही मौजूद रहेंगे। शायद किसी और सभ्यता को मानवियत के ये दूत मिल जाएं। फिर वो इन यानों में लगे ग्रामाफ़ोन रिकॉर्ड के ज़रिए मानवता का संदेश पढ़ सकेंगे। वायेजर अभियान के ज़रिए 1977 की दुनिया अंतरिक्ष में जी रही है। वायेजर अभियान ने मानवता को अमर कर दिया है।

Wednesday 14 March 2018

Stiphan Howking (स्टीफ़न विलियम हॉकिंग)

Stiphan Howking (स्टीफ़न  हॉकिंग)

उनके बारे में कहा जाता है कि उनके दिमाग ने इतना काम किया की शरीर ने काम करना बंद कर दिया | आज (१४/०३/२०१८) उस अद्भुत विज्ञानी ने हम सब का साथ छोड़ उस अद्भुत रहस्यमयी दुनिया में चला गया | 
stifan howkin 


ब्रह्मांड में कहीं और भी जीवन है या नहीं, इस बारे में उनका कहना था कि अगर हमारी इस पृथ्वी पर जीवन अपने आप पनपा तो ब्रहमांड के उन अन्य ग्रहों में भी जीवन पनप सकता है, जहां जीवन के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होंगी। लेकिन, पिछली लगभग आधी सदी के दौरान हमारी सारी कोशिशों के बावजूद अब तक कहीं जीवन का पता नहीं लग पाया है। फिर भी, अगर कहीं एलियन हैं तो हमें उनसे सावधान रहना चाहिए। 
Stiphan Howking (स्टीफ़न विलियम हॉकिंग)  बारे में कहा जाता है कि उनके दिमाग ने इतना काम किया की शरीर ने काम करना बंद कर दिया | आज  उस अद्भुत विज्ञानी ने हम सब का साथ छोड़ उस अद्भुत रहस्यमयी दुनिया में चला गया |

स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि परग्रही सभ्यताओं को हमें अपना सुराग नहीं देना चाहिए क्योंकि वे अगर तकनीकी दृष्टि से हमसे कहीं अधिक उन्नत प्राणी हुए तो उनके कारण हमारा जीवन संकट में पड़ सकता है।ब्रह्मांड में कहीं और भी जीवन है या नहीं, इस बारे में उनका कहना था कि अगर हमारी इस पृथ्वी पर जीवन अपने आप पनपा तो ब्रहमांड के उन अन्य ग्रहों में भी जीवन पनप सकता है, जहां जीवन के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां होंगी। लेकिन, पिछली लगभग आधी सदी के दौरान हमारी सारी कोशिशों के बावजूद अब तक कहीं जीवन का पता नहीं लग पाया है। फिर भी, अगर कहीं एलियन हैं तो हमें उनसे सावधान रहना चाहिए। 



हॉकिंग सोचते थे कि आगामी 20 वर्षों में तो वैज्ञानिकों को बुद्धिमान जीवों का पता लगने से रहा। लेकिन, यह भी सच है कि अंतरिक्ष में घूम रही केपलर दूरबीन ने अब तक 3,000 से अधिक बर्हिग्रहों का पता लगा लिया है। उसने जता दिया है कि हमारी अपनी आकाशगंगा में ही ऐसे अरबों ग्रह हो सकते हैं जिनमें जीवन का अस्तित्व हो सकता है। हॉकिंग का कहना था कि जितना ब्रह्मांड हम देख पा रहे हैं, उसी में हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी की तरह कम से कम 100 अरब मंदाकिनियां होंगी। इसका साफ मतलब है कि हम ब्रह्मांड में अकेले नहीं है। फिर भी हमें यही आशा करनी चाहिए कि बुद्धिमान एलियन हम तक न पहुंच पाएं क्योंकि उनसे मानव सभ्यता को भारी खतरा हो सकता है। 
Stiphan Howking (स्टीफ़न विलियम हॉकिंग)


     स्टीफ़न हॉकिंग का जन्म ८ जनवरी १९४२ को फ्रेंक और इसाबेल हॉकिंग के घर में हुआ।    Stephen Hawking आज इतने महान ब्रह्मांड विज्ञानी थे , उनका स्कूली जीवन बहुत उत्कृष्ट नहीं था| वे शुरू में अपनी कक्षा में औसत से कम अंक पाने वाले छात्र थे, किन्तु उन्हें बोर्ड गेम खेलना अच्छा लगता था| उन्हें गणित में बहुत दिलचस्पी थी, यहाँ तक कि उन्होंने गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए कुछ लोगों की मदद से पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हिस्सों से कंप्यूटर बना दिया था| ग्यारह वर्ष की उम्र में स्टीफन, स्कूल गए और उसके बाद यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड गए| स्टीफन गणित का अध्ययन करना चाहते थे लेकिन यूनिवर्सिटी कॉलेज में गणित  उपलब्ध नहीं थी, इसलिए उन्होंने भौतिकी अपनाई। स्टीफन हॉकिंग एक मेधावी छात्र थे, इसलिए स्कूल और कॉलेज में हमेशा अव्वल आते रहे। तीन सालों में ही उन्हें प्रकृति विज्ञान में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स की डिग्री मिली। जो कि उनके पिता के लिए किसी ख्वाब के पूरा होने से कम नहीं था। गणित को प्रिय विषय मानने वाले स्टीफन हॉकिंग में बड़े होकर अंतरिक्ष-विज्ञान में एक ख़ास रुचि जगी। यही वजह थी कि जब वे महज 20 वर्ष के थे, कैंब्रिज कॉस्मोलॉजी विषय में रिसर्च के लिए चुन लिए गए। ऑक्सफोर्ड में कोई भी ब्रह्मांड विज्ञान में काम नहीं कर रहा था उन्होंने इसमें शोध करने की ठानी और सीधे पहुंच गए कैम्ब्रिज। वहां उन्होंने कॉस्मोलॉजी यानी ब्रह्मांड विज्ञान में शोध किया। इसी विषय में उन्होंने पीएच.डी. भी की। अपनी पीएच.डी. करने के बाद जॉनविले और क्यूस कॉलेज के पहले रिचर्स फैलो और फिर बाद में प्रोफेशनल फैलो बने। यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। लेकिन हॉकिंग ने वही किया जो वे चाहते थे। संयुक्त परिवार में भरोसा रखने वाले हॉकिंग आज भी अपने तीन बच्चों और एक पोते के साथ रहते हैं। स्टीफन के अंदर एक ग्रेट साइंटिस्ट की क्वालिटी बचपन से ही दिखाई देने लगी थी। दरअसल, किसी भी चीज़ के निर्माण और उसकी कार्य-प्रणाली को लेकर उनके अंदर तीव्र जिज्ञासा रहती थी। यही वजह थी कि जब वे स्कूल में थे, तो उनके सभी सहपाठी और टीचर उन्हें प्यार से 'आइंस्टाइन' कहकर बुलाते थे। 



जब वो 21 साल के थे तो एक बार छुट्टिय मानाने के मानाने के लिए अपने घर पर आये हुए थे , वो सीढ़ी से उतर रहे थे की तभी उन्हें बेहोशी का एहसास हुआ और वो तुरंत ही नीचे गिर पड़े।उन्हें डॉक्टर के पास ले जायेगा शुरू में तो सब ने उसे मात्र एक कमजोरी के कारण हुई घटना मानी पर बार-बार ऐसा होने पर उन्हें बड़े डोक्टरो के पास ले जाया गया , जहाँ ये पता लगा कि वो एक अनजान और कभी न ठीक होने वाली बीमारी से ग्रस्त है जिसका नाम है न्यूरॉन मोर्टार डीसीस ।इस बीमारी में शारीर के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते है।और अंत में श्वास नली भी बंद हो जाने से मरीज घुट घुट के मर जाता है। डॉक्टरों ने कहा हॉकिंग बस 2 साल के मेहमान है। लेकिन हॉकिंग ने अपनी इच्छा शक्ति पर पूरी पकड़ बना ली थी और उन्होंने कहा की मैं 2 नहीं २० नहीं पूरे ५० सालो तक जियूँगा । उस समय सबने उन्हें दिलासा देने के लिए हाँ में हाँ मिला दी थी, पर आज दुनिया जानती है की हॉकिंग ने जो कहा वो कर के दिखाया । अपनी इसी बीमारी के बीच में ही उन्होंने अपनी पीएचडीपूरी की और अपनी प्रेमिका जेन वाइल्ड से विवाह किया तब तक हॉकिंग का पूरा दाहिना हिस्सा ख़राब हो चूका था वो stick के सहारे चलते थे । अब हॉकिंग ने अपने वैज्ञानिक जीवन का सफ़र शुरू किया और धीरे धीरे उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैलने लगी।
रोग से पीड़ित होने के बावजूद भी वो किसी का सहारा नही लेते थे और अपने दैनिक कामो को निरंतर रखा | 1974  में उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मिलने के बाद आपेक्षिता का सिद्धांत और पुंज सिद्धांत पर काम करना शुरू कर दिया था | इस तरह इन दोनों सिद्धांतो को मिलाकर उन्होंने महाएकीकृत सिद्धांत बनाया था | उनके इस सिद्धांत से दुनिया भर में उनका नाम हो गया और उनको एक प्रख्यात वैज्ञानिक के रूप में जाना जाने लगा |
Stiphan Howking (स्टीफ़न विलियम हॉकिंग)
 वे कहते हैं अगर आप विकलांग हैं या अपंग हैंतो इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, और साथ ही दुनिया को दोष देने या अपने ऊपर किसी दया की उम्मीद करना सही नहीं है। बस आपके भीतर सकारात्मक विचार होने चाहिए और स्तिथि के अनुसार जितना हो सके अपना अच्छा योगदान देना चाहिए; अगर एक मनुष्य अपंग है तो उसे अपने मन से अपंग या विकलांग नहीं होना चाहिए। मेरे ख्याल से, उन्हें ऐसी गतिविधियोँ में ध्यान देना चाहिए जिससे की एक शारीरिक विकलांगता वाले व्यक्ति के लिए और भी गंभीर बाधा न उपस्थित हो सके। मुझे डर लगता है विकलांगों के लिए खेला जाने वाला ओलोम्पिक मेरे से अपील तो नहीं करगा, पर यह मेरे लिए कहना आसान होगा क्योंकि मुझे एथलेटिक्स पसंद नहीं है। दूसरी ओर देखें तो विज्ञान बहुत ही अच्छा विषय है क्योंकि यह दिमाग का खेल है। बिलकुल सही है यह बात क्योंकि बहुत सारे आविष्कारों से कुछ लोगों नें कमल कर दिया है लेकिन सैद्धांतिक काम लगभग आदर्श है। मेरी विकलांगता नें मेरे कार्य क्षेत्र में कोई बाधा नहीं दिया है जो की है सैद्धांतिक भौतिकी। बल्कि इससे मुझे मदद मिली है मेरे भाषण और प्रशासनिक कार्य पर परिरक्षण करने के लिए। मैं यह सब संभाल पाया , मेरी पत्नी, बच्चे, सहयोगी और छात्रों से ढेर सारे मदद के कारण। मैंने देखा साधारण रूप से लोग मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, पर आपको उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए की वे महसूस करें कि उनके द्वारा किये गए प्रयास उचित और उपयुक्त साबित होंगे।


Treatment of stomach problems (Piles/constipation) with Yoga and Ayurveda method(Hindi) - Suraj Jaiswal Kabira

बवासीर कुछ दिन पहले बहुत से लोगो द्वारा बवासीर के इलाज के तरीके पूछा जा रहा था। मुझे कई लोगो ने वहां बोला कि इसके लिए सही योग विधि बताऊ। ...